tag:blogger.com,1999:blog-25230923.post2332544562033872393..comments2023-05-16T15:03:34.192+05:30Comments on मेरी कविताएँ: जब पहली बार मैंने ग़ज़ल लिखीशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-25230923.post-28132744853901942382008-05-15T10:52:00.000+05:302008-05-15T10:52:00.000+05:30बकवास है गुङिया भीतर गुङिया आत्मकथा, नकली और गढी ह...बकवास है गुङिया भीतर गुङिया आत्मकथा, नकली और गढी हुई। मैत्रेयी का मुखौटा नोचना होगा। यह सखि भाव की बात करती है यादव जैसे वुमेनाइजर के साथ? मंच पर से प्रेमी की बात करती यह बदसूरत मगर रंगीली बुढिया। इसे प्रेम सेक्स में स्त्री मुक्ती नजर आती है। गांव की मेहनतकश औरतों को गलत तरह से पेश करती है। <BR/>चालाक लोमडी की नकली और गढी हुई आत्मकथा, यह पढने लायक नहीं है।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-25230923.post-38843096174283037082007-03-28T11:55:00.000+05:302007-03-28T11:55:00.000+05:30तेल के दीये तो कब के बुझ चुके होतेमगर खून-ए-जिगर न...तेल के दीये तो कब के बुझ चुके होते<BR/>मगर खून-ए-जिगर ने उन्हें बुझने न दिया।<BR/><BR/>सुन्दर प्रयास है.रंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-25230923.post-54416596099830007822007-03-20T12:55:00.000+05:302007-03-20T12:55:00.000+05:30इन राहों ने निगले हैं कई रहगुजरबना लिया हूँ घर इस ...इन राहों ने निगले हैं कई रहगुजर<BR/>बना लिया हूँ घर इस पहाड़ी पर<BR/>किसी खूनी रास्ते को घर से गुजरने न दिया।<BR/>,,,,<BR/>sundar bhaavprinccesshttps://www.blogger.com/profile/01310513413239260833noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-25230923.post-80906411679346709992007-03-19T19:42:00.000+05:302007-03-19T19:42:00.000+05:30वाह! सुन्दर प्रयास है.भविष्य में भी इस प्रकार की त...वाह! सुन्दर प्रयास है.<BR/><BR/>भविष्य में भी इस प्रकार की तुकांत रचनाएँ प्रस्तुत करते रहियेगा।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-25230923.post-39128076477031170732007-03-19T14:46:00.000+05:302007-03-19T14:46:00.000+05:30गजल तो एकदम दुरस्त है... मगर अन्त में आपन एक सीरिय...गजल तो एकदम दुरस्त है... मगर अन्त में आपन एक सीरियस गजल को हास्य का जामा पहना दियाMohinder56https://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-25230923.post-61760778529725084502007-03-19T14:19:00.000+05:302007-03-19T14:19:00.000+05:30बात मुझे तो कुछ समझ नही आईबात मुझे तो कुछ समझ नही आईयोगेश समदर्शीhttps://www.blogger.com/profile/05774430361051230942noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-25230923.post-34280728627229305512007-03-19T13:14:00.000+05:302007-03-19T13:14:00.000+05:30बहुत खूब शैलेश भाई। मैं राजीव जी से पूरी तरह सहमत ...बहुत खूब शैलेश भाई। मैं राजीव जी से पूरी तरह सहमत हूँ। आप सचमुच छुपे रुस्तम निकले। हालाँकि ग़ज़ल के लिहाज से कुछ कमियाँ नजर आती हैं पर पहली बार में तो सब कुछ ठीक नहीं हो सकता न। सो कोशिश करते रहिये, ये कमियाँ भी जल्द दूर हो जाएँगीं।SahityaShilpihttps://www.blogger.com/profile/12784365227441414723noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-25230923.post-29321156266473722092007-03-19T10:39:00.000+05:302007-03-19T10:39:00.000+05:30आप रुस्तम हैं लेकिन छुपे हुए। तुकांत रचना का अच्छा...आप रुस्तम हैं लेकिन छुपे हुए। तुकांत रचना का अच्छा प्रयास। और निश्चित ही सुन्दर भावार्थ निहित हैं..<BR/><BR/>*** राजीव रंजन प्रसादराजीव रंजन प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/17408893442948645899noreply@blogger.com