फ़ितरत
लगता है नहीं बदल पायेगी
सूरत इस जहाँ की,
बहुत बार कोशिशे हुयी हैं
क्या हुआ?
अब तक,
हर तरफ अंधेरा लिये
उजाला भटक रहा है।
चंद लोगों का अपूर्ण हठ,
अपूर्ण साहस,
अपूर्ण प्रयास,
कुछ नहीं कर पाया है अब तक।
हमेशा से लोग कहते आये हैं
कब तक चलेगा ऐसा?
शायद कहते ही रह जायेंगे।
कौन कहता है कि
दुनिया में गति नहीं है?
ऐसे क्या धीरे चल रहा है?
नहीं ना
तो चलने दो
इसे ऐसे ही।
पर क्या करें?
फ़ितरत नहीं बदलती कुछ लोगों की।
रचनाकाल- १० अगस्त २००४ तद्नुसार विक्रम संवत् २०६१ श्रावण (द्वि॰)कृष्ण पक्ष की दशमी।