गुरुवार, 16 अगस्त 2007

मेरे जन्मदिन पर

आज मेरा जन्मदिवस हैलोगों ने पूछा क्या स्पैशल है? कुछ नहीं सूझा तो मेरे मित्र कवि 'मनीष वंदेमातरम्' द्वारा इस अवसर पर भेजी कविता को प्रकाशित करने का सोच लियाशायद कुछ स्पैशल लगे :)


जब से तुम गये हो
तबसे
जाने कितनी बार
बदला हे गंगा-जमुना ने
रंग अपना
और
पहना -उतारा है
इस शहर ने
ढंग नया-नया

आज
जब पहले की तरह
उदास होता हूँ
और कोई समझाता नहीं
आँसू पोंछ लेने को
अपनी रूमाल थमाता नहीं
....तब
ऐ दोस्त! तुम बहुत याद आते हो

एक ही थाली में
खाते थे, आधा-आधा
तुम मेरी भूख में हिस्सेदार थे
मेरी धूप के
मेरी छांव के
बराबर
के सांझीदार थे
जब चौराहे पर खड़ा
मैं, कोई एक रास्ता चुन नहीं पाता हूँ
अलग दिखने की चाह लिए, खड़े-खड़े
भीड़ में घुल जाता हूँ
और कोई बचाता नहीं
तब...
ऐ दोस्त !तुम बहुत याद आते हो

जब
रातों रात बदल जाते हैं पोस्टर
शहर के
और मुझको ख़बर नहीं होती
सड़क के किनारे, खुले नल पे
किसी की नज़र नहीं होती
नकली हँसी से जब जी भर जाता है
मन का गुबार, कहीं निकल नहीं पाता है
तब...
ऐ दोस्त़!तुम बहुत याद आते हो

द्वारा मनीष वंदेमातरम्

सोमवार, 25 जून 2007

डटे रहो (देशप्रेमियों और भाषाप्रेमियों के नाम)

तुम्हारी राष्ट्र-सेवा पर जब मुस्कुराने लगें लोग
तुम्हें तुम्हारा भविष्य दिखाकर डराने लगें लोग।।

तो मत घबराना, डटे रहना
उन्हें भी मत कुछ कहना
हर आक्षेप सहज ही सहना
ग्रेट वॉल की भाँति कभी न ढहना।

इनमें से कइयों ने तेरी तरह शुरुआत की थी
तब इन्हीं दरिंदों ने उन पर आघात की थी।

जब वे हथियार डाल दिए थे
भीड़ ने ढ़ेरों उपहार दिए थे।

अब ये भी भीड़ की भीड़ हैं
इनका अगला लक्ष्य तुम्हारे नीड़ हैं।

ये तो ख़ूनी राहों पर चिराग जलाते रहेंगे।
किसी के जगने पर उसे सुलाते रहेंगे।।
मातृभाषा, मातृभूमि पर प्राण न्योछावर करो
वरना ये परतंत्री हमारी नस्लों को खाते रहेंगे।।



शब्दार्थ-
ग्रेट वॉल- चीन की महान दीवार, नीड़- आशियाना, निवास, घर

लेखन-तिथि- २४ जनवरी २००७ विक्रम संवत् २०६३ माघ शुक्ल पक्ष की षष्ठी

मंगलवार, 19 जून 2007

कल का मंज़र

पतझड़ के मंज़र से कभी दुःखी मत होना
बहुत जल्द दरख़्तों में पत्ते पड़ने वाले हैं।

नेताओं की हरकतों को पागलपन न समझना
ये तो अविलम्ब कुत्ते की मौत मरने वाले हैं।

आखिर कब तक उन रिश्तों को बचाकर रखोगे?
जो थोड़ी भी हवा में आकर सड़ने वाले हैं।

शिखर-वार्ता को बॉर्डर की सच्चाई न समझो
मौका मिलते ही ये सैनिक लड़ने वाले हैं।

अभी क्या, अभी तो चाँद पर जा रहे हैं
थोड़ा सब्र करो, कुछ ही दिनों में तारे पकड़ने वाले हैं।

तुम तो एक अरब तेरह करोड़ पर घबरा गये
जबकि पचास साल में, दो अरब तक बढ़ने वाले हैं।

बहनो! गुंडों से बचाव, खुद ही करना सीख लो
यह न सोचो, पुलिसवाले इन्हें जकड़ने वाले हैं।

शब्दार्थ-
दरख़्त- पेड़, बॉर्डर- सीमा, एक अरब तेरह करोड़- भारत की वर्तमान जनसंख्या, दो अरब- भारत के भविष्य की जनसंख्या।

लेखन-तिथि- २४ नवम्बर २००६ तद्‌नुसार विक्रम संवत् २०६३ मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्थी

सोमवार, 11 जून 2007

उनका मज़ा

हमारे पेशेंस को आज़माकर, उन्हें मज़ा आता है
दिल को खूब जलाकर, उन्हें मज़ा आता है।

खूब बातें करके जब हम कहते हैं "अब फ़ोन रखूँ?"
बैलेंस का दिवाला बनाकर, उन्हें मज़ा आता है।

उन्हें मालूम है नौकरीवाला हूँ, मिलने आ नहीं सकता
पर मिलने की कसमें खिलाकर, उन्हें मज़ा आता है।

हम तो यूँ ही नशे में हैं, हमें यूँ न देखो
मगर जाम-ए-नैन पिलाकर, उन्हें मज़ा आता है।

हम खूब कहते हैं शादी से पहले यह ठीक नहीं
सोये अरमान जगाकर, उन्हें मज़ा आता है।

वैसे खाना तो वो बहुत टेस्टी बनाती हैं
मगर खूब मिर्च मिलाकर, उन्हें मज़ा आता है।

वो जानती हैं, हमारी कमज़ोरी क्या है, तभी
प्यार ग़ैर से जताकर, उन्हें मज़ा आता है।

शब्दार्थ-
पेशेंस-
धैर्य, बैंलेस- उपलब्ध धनराशि, टेस्टी- स्वादिष्ट।

लेखन-तिथि- २२ नवम्बर २००६ तद्‌नुसार विक्रम संवत् २०६३ मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष द्वितीया।

सोमवार, 28 मई 2007

महान बनो (हिंगलिश कविता)

महान होने की है यह पहली कंडिशन
विचारों में न हो तनिक फ़्लक्चुएशन।

प्रैक्टिकल बनकर न पहुँचोगे शीर्ष पर
हमेशा नज़रों के सामने रखो, अपना एम्बिशन।

टीवी चैनलों से सदैव सदाचार लेते रहो
बुरी आदतों को न दो मन में आने की परमिशन।

ये नहीं कि केवल मित्रों की बराबरी करो
रोज़ करते रहो तुम ख़ुद से भी कॉम्पटिशन।

जब भी तुम्हारे ऊपर ज़ुर्म या ज़्यादती हो
न भूलो कोर्ट में जाकर करना एक पटिशन।

भाई-भाई में रही है सदा ही झगड़ने की प्रथा
छोटी सी बात को लेकर न करो घर का पार्टिशन।

केवल अपना राग अलापना, अच्छे लक्षण नहीं
दो मौका सबको बोलने का, न समझो उन्हें अपोज़िशन।

शब्दार्थ-
कंडिशन-
शर्त, फ़्लक्चुएशन- उतार-चढ़ाव, प्रैक्टिकल- व्यवहारिक, एम्बिशन- महात्वकांक्षा, परमिशन- अनुमति, कॉम्पटिशन- प्रतिस्पर्धा, पटिशन- याचिका, पार्टिशन- विभाजन, अपोज़िशन- विरोधी।

लेखन-तिथि- २२ नवम्बर २००६ तद्‌नुसार विक्रम संवत् २०६३ मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष द्वितीया।

शनिवार, 19 मई 2007

हमारा इंडिया

हम तो आज भी अंग्रेज़ों के अधीन हैं
क्योंकि भारत 'इंडिया' में विलीन है।

भारतवर्षोंन्नति हो भी तो कैसे? जब
हर कोई पलायन को तल्लीन है।

कैसे जमा हो बिजली, पानी, सड़क का खर्च?
जबकि हम टैक्स भरने के प्रति उदासीन हैं।

कैसे बनाओगे दिल्ली को लंदन जैसा?
जब यहाँ आधी बस्तियाँ मलीन हैं।

हर दुकानदार है करा रहा यहाँ बालमज़दूरी
यह जनाते हुए, अपराध यह संगीन है।

एड्स पर पूरा अंकुश आख़िर लगे भी कैसे?
जबकि हज़ार पर नौ सौ तैंतीस ख़वातीन हैं।

क्यों बढ़ाते जा रहे हो संतानों की फ़ौज
न खाने को अन्न है, न रहने को ज़मीन है।

शब्दार्थ०-
भारतवर्षोंन्नति- भारत देश की उन्नति, ख़वातीन- नारी, महिला, स्त्री, लड़की

लेखन-तिथि- २१ नवम्बर २००६ तद्‌नुसार विक्रम संवत् २०६३ मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा।

गुरुवार, 3 मई 2007

क्या डीटीसी का घाटा कम होगा?

डीटीसी पाँच सालों से घाटा झेल रही है
केवल 'पास' वाले यात्रियों को ठेल रही है।

जब इनके कंडक्टर
प्राइवेट वालों से घूस लेते हैं
हाथ देने पर भी
स्टैंड बन बिना रुके, फूट लेते हैं।

प्राइवेट बसें ठूँस-ठूँस के भरी होती हैं
डीटीसी बसें मुँह बाएँ खड़ी होती हैं।

इनमें जबकि केवल 'दो' वाले चढ़ते हैं
'दो' में चढ़कर 'पाँच' की दूरी बढ़ते हैं।

बस के गंतव्य तक पहुँचने की, सरकार गारंटी नहीं लेती
चलती बस से उतरते, आपकी सलामती की वारंटी नहीं लेती।

नए यात्री को ये ठीक जगह उतारते नहीं
कहाँ-कहाँ जाएँगे जब ये पुकारते नहीं।

क्यों महँगाई के डंडे में
तेल लगाते जा रहे हो?
अपनी करनी का फल ख़ुद भी चखो,
क्यों भारत की नैया
डुबाते जा रहे हो?

किराया बढ़ाकर सरकार
अपनी कमज़ोरी छुपाना चाहती है।
या यूँ कहें कि
प्राइवेट का मुनाफ़ा बढ़ाना चाहती है।

पानी सर के पार हो जाए
अब इसी का इंतज़ार है
मिलकर सत्ता बदल दो
समय की यही दरक़ार है।


लेखन-तिथि- ३ मई २००७ तद्‌नुसार विक्रम संवत् २०६४ प्रथम ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष प्रतिपदा।