डटे रहो (देशप्रेमियों और भाषाप्रेमियों के नाम)
तुम्हारी राष्ट्र-सेवा पर जब मुस्कुराने लगें लोग
तुम्हें तुम्हारा भविष्य दिखाकर डराने लगें लोग।।
तो मत घबराना, डटे रहना
उन्हें भी मत कुछ कहना
हर आक्षेप सहज ही सहना
ग्रेट वॉल की भाँति कभी न ढहना।
इनमें से कइयों ने तेरी तरह शुरुआत की थी
तब इन्हीं दरिंदों ने उन पर आघात की थी।
जब वे हथियार डाल दिए थे
भीड़ ने ढ़ेरों उपहार दिए थे।
अब ये भी भीड़ की भीड़ हैं
इनका अगला लक्ष्य तुम्हारे नीड़ हैं।
ये तो ख़ूनी राहों पर चिराग जलाते रहेंगे।
किसी के जगने पर उसे सुलाते रहेंगे।।
मातृभाषा, मातृभूमि पर प्राण न्योछावर करो
वरना ये परतंत्री हमारी नस्लों को खाते रहेंगे।।
शब्दार्थ-
ग्रेट वॉल- चीन की महान दीवार, नीड़- आशियाना, निवास, घर
लेखन-तिथि- २४ जनवरी २००७ विक्रम संवत् २०६३ माघ शुक्ल पक्ष की षष्ठी
19 टिप्पणियां:
बहुत खुब शैलेश जी। मातृभाषा एवं मातृभूमि के प्रति प्रेम एवं आदर आज हरेक भारतवासी से वांछनीय है।
"हर आक्षेप सहज ही सहना
ग्रेट वॉल की भाँति कभी न ढहना।"
बहुत ही सही उपमा का प्रयोग किया है आपने ।
कुल मिलाकर रचना बहुत ही अच्छा संदेश देती है ।
वरना ये परतंत्री॰॰॰॰॰॰॰" पंक्ति किसी का भी खून खौल देने का माद्दा रखती है ।
अतीव सुन्दर रचना॰॰॰॰॰ आपकी लेखनी को सादर प्रणाम करता हूँ ।
आर्यमनु
desh ke parti likhe bhaav bahut sudnar lage ....
शैलेश जी आपकी इस रचना के लिये मेरे शब्द कोश में कोई शब्द नहीं है।
'डटे रहो' बहुत ही सुन्दर शीर्षक है।
आज के समय में वीर रस से परिपुर्ण रचना बहुत कम मिलती है।
आपके मेरी तरफ से ढेर सारी बधाईयां।
आभारी
नवीन-true indian
bahut hi behatreen kavita hai......deshprem se autprot......'date raho'sirshak bhi satik hai......achchi rachna ke liye badhai sweekar kare....
mujhe ye do pankhtiyan visheshkar pasand aayi
ये तो ख़ूनी राहों पर चिराग जलाते रहेंगे।
किसी के जगने पर उसे सुलाते रहेंगे।।
jo bhi awaz uthana chahta hai...use kuchalne ki athev koshis hoti rehti hai.....ek baar phir se......badhayiyaan..
divya
अति सुन्दर कविता। भाषा से अधिक सुन्दर भाव हैं ।
देश के प्रति यह भावना हर युवा में अपेक्षित है ।
आपके चिन्तन को मेरा प्रणाम ।
"तब इन्हीं दरिंदों ने उन पर आघात की थी।"
एक संदेह है, आघात किया था होना चाहिऐ ना?
यद्यपि कवि व्याकरण से मुक्त होता है। फिर भी मैंने यह सोच के पूछ लिया कि कहीँ मैं गलत तो नही सोच रहा।
वैसे कविता के भाव बहुत प्रभावशाली हैं।
विकास जी,
आपको व्याकरण की सटीक जानकारी है, मगर कविता में प्रवाह बनाए रखने हेतु कभी ऐसा करना पड़े तो कतराना नहीं चाहिए। मैं लिखते वक़्त इससे वाकिफ़ था लेकिन कोई दूसरा शब्द नहीं खोज पा रहा था।
देश भक्ति एंव सेवा भाव से ओतप्रोत कविता सुन्दर बन पडी है..
हम तो काफ़ी समय से डटे हुये हैं अब आगे आने वाले आप जैसे नौजवानों की बारी है
शैलेश जैसा नाम वैसा काम... :) अच्छा लिखा है...बहुत दिनो से किसी को टिप्पणी नही दे पाई..कुछ व्यस्त हो गई थी...
सुनीता(शानू)
shailesh ji aapne bahut accha likha kintu aap angla(english) shabdon ka prayog na kare jaise great wall to aur bhi sunder hoga,aise mere vichar hai...MITHILESH N. BHATT
बहुत सुंदर और प्रभावपूर्ण रचना है शैलेष जी. आशा है कि हिन्दी-प्रेमी इससे प्रेरणा लेंगे और कुछ अन्य लोगों में भी मातृभाषा के प्रति सम्मान उत्पन्न होगा.
बहुत अच्छा लगा पढ़के...
सुंदर भाव!!
शुक्रिया!
दिल को गहराई तक छू गया. लिखते रहिये, बहुतों को प्रेरणा मिलेगी
Payare shailesh bhai,
bahut sunder kaita likhi hai apne desh prem par,apne kitni sunder rachna ki hai. तुम्हें तुम्हारा भविष्य दिखाकर डराने लगें लोग। तो मत घबराना, डटे रहना
God bless u.
Have a bright future in poetry.
Sanju
bahut sundar rachna hai aapki.ishe padhkar deshprem ke prati apna farj yaad aata hai.
शैलेश जी,
बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना!आपका ब्लाग बहुत अच्छा लगा।
मैं अपने तीनों ब्लाग पर हर रविवार ग़ज़ल,
गीत डालता हूँ,जरूर देखें।मुझे पूरा यकीनहै कि आप
को ये पसंद आयेंगे।
बहुत उम्दा कविता है श्रीमान जी मेरी शुभकामनायें
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