बुधवार, 26 जुलाई 2006

फ़ितरत

लगता है नहीं बदल पायेगी
सूरत इस जहाँ की,
बहुत बार कोशिशे हुयी हैं
क्या हुआ?
अब तक,
हर तरफ अंधेरा लिये
उजाला भटक रहा है।
चंद लोगों का अपूर्ण हठ,
अपूर्ण साहस,
अपूर्ण प्रयास,
कुछ नहीं कर पाया है अब तक।
हमेशा से लोग कहते आये हैं
कब तक चलेगा ऐसा?
शायद कहते ही रह जायेंगे।
कौन कहता है कि
दुनिया में गति नहीं है?
ऐसे क्या धीरे चल रहा है?
नहीं ना
तो चलने दो
इसे ऐसे ही।
पर क्या करें?
फ़ितरत नहीं बदलती कुछ लोगों की।

रचनाकाल- १० अगस्त २००४ तद्‌नुसार विक्रम संवत् २०६१ श्रावण (द्वि॰)कृष्ण पक्ष की दशमी।

2 टिप्‍पणियां:

Kalingaa... ने कहा…

Rukh badal raha hai hawaon ka
Rukh badal raha hai sab fizaon ka
Tu agar nahin haar manega mere saath hoga
To hum badalne ki takaat rakhte hain is jahaan ko

बेनामी ने कहा…

भाई, जन्मदिन की शुभकामनाएं

नीरज