मंगलवार, 3 अप्रैल 2007

नयी तकनीक

जब कॉलेज़ में था तो मोबाइल हमेशा सरल मोबाइल संदेशों से भरा होता था, उसमें चलते-फिरते शेर होते थे। मैंने सोचा चलो इसी तरह का कुछ मैं भी लिखूँ। देखिए क्या लिखा था।


वे जो करते हैं मिसकॉल और कहते हैं कि हमें याद कर रहे थे।
कोई बताये उनसे हम बैलेंस न होने की फ़रियाद कर रहे थे।।

वहीं कुशल-क्षेम रोज़ाना जानना और बताना
रूठने-मनाने से ज़िन्दगी आबाद कर रहे थे।।

वो जो अकेले थे, पूछते थे लम्बी बातों का सबब
कैसे बतायें कि अपनी चुप्पी का क्या-क्या अनुवाद कर रहे थे।।

हम तो खुश थे उनकी बातों भरी दुनिया में
हमें क्या कि अलकायदा वाले कहाँ-कहाँ फ़साद कर रहे थे।।

पहले कहाँ होती थी रोज़ उनके बातों की झंकार
हम तो रह-रह कर नयी तकनीक का धन्यवाद कर रहे थे।।


लेखन-तिथि- २० मई २००६ तद्‌नुसार विक्रम संवत् २०६३ ज्येष्ठ कृष्ण अष्टमी।

5 टिप्‍पणियां:

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत ही नये तरीक़े से नया सा लिखा है आपने
पहली पंक्ति पढ़ के बरबस ही मुस्करहट आ गयी

पहले कहाँ होती थी रोज़ उनके बातों की झंकार
हम तो रह-रह कर नयी तकनीक का धन्यवाद कर रहे थे।।

बहुत सही लिखा है ..यह

Mohinder56 ने कहा…

हास्य की पटरी पर आपने भी अपनी रेल चला दी.. मुबारक हो...अच्छी रचना..

Unknown ने कहा…

bahut hi badiya panktiyan hai manyawar........

Unknown ने कहा…

duvihida aur vividta ka sahi parichya diya hai.

apko saalam karta hu.

shailesh bansal

Unknown ने कहा…

bahut hi acchi rachna hai,isme koi do ray nahi hai.
meri subhkamnaye apke sath hai.