मंगलवार, 19 जून 2007

कल का मंज़र

पतझड़ के मंज़र से कभी दुःखी मत होना
बहुत जल्द दरख़्तों में पत्ते पड़ने वाले हैं।

नेताओं की हरकतों को पागलपन न समझना
ये तो अविलम्ब कुत्ते की मौत मरने वाले हैं।

आखिर कब तक उन रिश्तों को बचाकर रखोगे?
जो थोड़ी भी हवा में आकर सड़ने वाले हैं।

शिखर-वार्ता को बॉर्डर की सच्चाई न समझो
मौका मिलते ही ये सैनिक लड़ने वाले हैं।

अभी क्या, अभी तो चाँद पर जा रहे हैं
थोड़ा सब्र करो, कुछ ही दिनों में तारे पकड़ने वाले हैं।

तुम तो एक अरब तेरह करोड़ पर घबरा गये
जबकि पचास साल में, दो अरब तक बढ़ने वाले हैं।

बहनो! गुंडों से बचाव, खुद ही करना सीख लो
यह न सोचो, पुलिसवाले इन्हें जकड़ने वाले हैं।

शब्दार्थ-
दरख़्त- पेड़, बॉर्डर- सीमा, एक अरब तेरह करोड़- भारत की वर्तमान जनसंख्या, दो अरब- भारत के भविष्य की जनसंख्या।

लेखन-तिथि- २४ नवम्बर २००६ तद्‌नुसार विक्रम संवत् २०६३ मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्थी

24 टिप्‍पणियां:

Rohit Kumar ने कहा…

भाई शैलेशजी,
नमस्कार!

आपकी रचना अच्छी लगी - शुभकामनाएं!


"नेताओं की हरकतों को पागलपन न समझना
ये तो अविल्ब कुत्ते की मौत मरने वाले हैं।"

ये कब मरने वाले हैं? मुझे तो लगता है, ऐसी प्रतीक्षा करते-करते हम ही चले जाएंगे! ये तो घुन की तरह लगे हैं - अब कहां जाएंगे?

साधुवाद!

रोहित कुमार 'हैप्पी'
संपादक, भारत-दर्शन
न्यूज़ीलैंड

रंजू भाटिया ने कहा…

आखिर कब तक उन रिश्तों को बचाकर रखोगे?
जो थोड़ी भी हवा में आकर सड़ने वाले हैं।..

सुंदर और सच बात दिखी इन पंक्तियों में,,,,,,

Rajeev ने कहा…

Bhai Shailesh Ji,

Maza aa gaya.
Kavita main Netao or Police ke liye Kahi gayi Lines main dam hain.

Keep it up.God Bless you.

Thanx and Regards,

Rajeev pandya
Human Resources

Unknown ने कहा…

शैलेश जी आप का आज के नेताऒ के उपर की गयी टिप्पणी बहुत ही उम्दा हैं और हम भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं।
आप को मेरी तरफ से ढेर सारी बधाईया।
नवीन -true Indian

डाॅ रामजी गिरि ने कहा…

शैलेश जी,
आज के हतोत्साहित कर देने वाले माहौल में आपकी की रचना आशावादी बयार की अनुभूति देती है.
साधुवाद.
=Dr.R Giri

गौरव सोलंकी ने कहा…

आशा भरी रचना पढ़ कर अच्छा लगा शैलेश जी। हाँ, कहीं कहीं हल्की सी बगावत की बू भी आ रही है।

आखिर कब तक उन रिश्तों को बचाकर रखोगे?
जो थोड़ी भी हवा में आकर सड़ने वाले हैं।
सुन्दर पंक्तियाँ हैं।
रचना कई भावों को एक साथ समेटे हुए है। कहीं कहीं आप व्यव्स्था के विरुद्ध बौखला भी जाते हैं।
बहनो! गुंडों से बचाव, खुद ही करना सीख लो
यह न सोचो, पुलिसवाले इन्हें जकड़ने वाले हैं।

और कहीं उम्मीद जगाते हैं।
नेताओं की हरकतों को पागलपन न समझना
ये तो अविल्ब कुत्ते की मौत मरने वाले हैं।
दिन के बाद रात क इंतज़ार करती पंक्तियाँ खूबसूरत हैं।
पतझड़ के मंज़र से कभी दुःखी मत होना
बहुत जल्द दरख़्तों में पत्ते पड़ने वाले हैं।

Manoj Jaiswal ने कहा…

शैलेशजी,
आपकी रचना अच्छी लगी - शुभकामनाएं!

Anita kumar ने कहा…

bahut khoob shailesh ji....

आर्य मनु ने कहा…

शैलेश जी,
इस आशावादी रचना में हमें "कल के सपने" दिखाने हेतु आपका धन्यवाद
किन्तु क्या आपको लगता है॰॰॰ये कुत्ते की मौत मरेंगे ?
फिर भी और कुछ नही तो क्या इन्तज़ार तो किया जा ही सकता है ।
आर्य मनु

Reetesh Gupta ने कहा…

आखिर कब तक उन रिश्तों को बचाकर रखोगे?
जो थोड़ी भी हवा में आकर सड़ने वाले हैं।

शैलेश जी,

क्या बात है ...बहुत ही अच्छी लगी आपकी यह रचना ...खूबसूरती से सच्चाई बयान की है आपने
...बधाई

Unknown ने कहा…

Dear Shailesh
Its nice that u start with positive ,but slowly u r moving toward negative....i do agree with contents of this Kavita, all is true but let we hope that
"Bhut Jaldee darakhto mei patte pdane wale hai" ,
HUM SAB DUA KARE KEE JALDEE HEE DARKHTO PAR NAYE PATTE PAD JAYE
no dout its very close to facts, specialy about our so called NETAS
take care

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

शैलेश जी
अच्छी अभिव्यक्ति है.
अविल्ब ---क्या लिखनाचाहते हैं आप ?

आशीष "अंशुमाली" ने कहा…

कुछ भी हो.. नेताओं पर की गयी टिप्‍पणी से लगा कि पारा बहुत हाई है।
जुल्‍मोसितम वहशत को अपने परचम को छू लेने दो
तनज्‍जुली उस हद पर जाकर शायद अपनेआप रुके।

Ja' ने कहा…

अच्छी अभिव्यक्ति है.
मगर इतना जरूर कहूँगा-----

जब हाथ में था लम्भ तो वो बेखबर ठहरे।
अब लकीर पीटना,उन्हें कियूँ यूँ अखरता है।।

महाशय, यदि सम्रण हो, आप की वोटों से ही वो मंत्री बने है।

जै बांवरा

शैलेश भारतवासी ने कहा…

राकेश जी,

यह टंकण की अशुद्धी थी। मैंने प्रूफ़-रीडिंग की थी कई बार, मगर हर बार अपनी कविता को इतने प्रवाह में पढ़ता गया कि 'अविल्ब' को 'अविलम्ब' समझ लिया। मुझे लगता है कि बहुत से पाठकों ने भी यही किया है। मगर आपका धन्यवाद देना चाहूँगा कि आपने इतने ध्यान से पढ़कर इस ब्लंडर से मुझे बचाया। अब मैंने ठीक कर दिया है।

जयप्रकाश मानस ने कहा…

रचना को किसी एक फार्म में देने का प्रयास करें । रचना को बार-बार लिखने, सुधारने के बाद ही पोस्ट करें । वैसे ठीक चल रही है यात्रा । जारी रहे ।

Alpana Verma ने कहा…

kavita bhaut achchee likhee hai-badhayee-aaj kal kee haqiqat bayan kartee hi-bilkul sateek shabdon mein kaha gaya hai-


Shabdarth mein aapne mistake kee hai theek kar leN--> 2 crore nahin do arab hona chaheeye --bharat kee bhavishya kee jansankhya
thanks-alpana verma

divya ने कहा…

तुम तो एक अरब तेरह करोड़ पर घबरा गये
जबकि पचास साल में, दो अरब तक बढ़ने वाले हैं
bilkul sahi aur samayik rachna hai...ye pankhtiyan...jhakjhorne wali hai...agar hamne in par rok nahi lagayi to kahan pahuchenge....brashtachar par to sab baaten karte hai....kintu jansankhya bridhi aur....global warming itne jwalant samasyaen hai.......inke upar dhyan aakarshit karne ke liye koti koti badhaeeyan....bahut hi achchi rachna
divya

Arun ने कहा…

Hi,
kavita aachi lagi..

देवेश वशिष्ठ ' खबरी ' ने कहा…

व्यंग बुझी उम्मीद,
नेताओं की हरकतों को पागलपन न समझना
ये तो अविलम्ब कुत्ते की मौत मरने वाले हैं।

शिखर-वार्ता को बॉर्डर की सच्चाई न समझो
मौका मिलते ही ये सैनिक लड़ने वाले हैं।

बहनो! गुंडों से बचाव, खुद ही करना सीख लो
यह न सोचो, पुलिसवाले इन्हें जकड़ने वाले हैं।

।। ध्यानेन्द्र मणि त्रिपाठी ।। Dhyanendra M. Tripathi ।। ने कहा…

करारा व्यंग है इस निर्भीक कविता में॰॰
लेखनी में यही गति बनाए रखें मेरे दोस्त।। बधाई

Mohinder56 ने कहा…

सुन्दर रचना है शैलेश जी

काश सब कुछ वैसा ही हो जैसा आपने कल्पना की है

Arvind Mishra ने कहा…

naye tewar ki khabardaar kavita hai aur haan! aap ne mere vigyaan kathaa blog padhha,prtikriyaa di-aabhaari hoon.sasneh
arvind

anurag ने कहा…

shailendraji,
bahoot dinobaad ek sunder kavita padhne ko mili. aapko bahoot dhanyavad. sa-anuraag.
ANURAG