मंगलवार, 24 अप्रैल 2007

.......और कुछ नहीं

ज़िंदगी बस मौत का इंतज़ार है, और कुछ नहीं।
हर शख़्स हुस्न का बीमार है, और कुछ नहीं।।

तुमको सोचते-सोचते रात बूढ़ी हो गई,
आँखों को सुबह का इंतज़ार है, और कुछ नहीं।।

अब तो जंगलों में भी सुकूँ नहीं मिलता,
हर चीज़ पैसों में गिरफ़्तार है, और कुछ नहीं।।

यह न सोचो, कहाँ से आती हैं दिल्ली में इतनी कारें,
जिनकी हैं, उनकी एक दिन की पगार है, और कुछ नहीं।।

नेताओं की दुवा-सलामी से कभी खुश मत होना,
चुनाव-पूर्व के ये व्यवहार हैं, और कुछ नहीं।।

हमने अपनी जी ली, जितना खुद के हिस्से में था,
बाकी की साँसें दोस्तों की उधार हैं, और कुछ नहीं।।

तेरे न फ़ोन करने पर, जब भी हम शिकायत करें,
इसे गिला मत समझना, ये तो प्यार है, और कुछ नहीं।।


लेखन-तिथि- १९ नवम्बर २००६ तद्‌नुसार विक्रम संवत् २०६३ मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी।

19 टिप्‍पणियां:

रंजू भाटिया ने कहा…

हमने अपनी जी ली, जितना खुद के हिस्से में था,
बाकी की साँसें दोस्तों की उधार हैं, और कुछ नहीं।।

बहुत ख़ूब लिखा है शैलेश जी आपने..

गीता पंडित ने कहा…

तुमको सोचते-सोचते रात बूढ़ी हो गई,
आँखों को सुबह का इंतज़ार है, और कुछ नहीं।।
wah...aur ye bhee

हमने अपनी जी ली, जितना खुद के हिस्से में था,
बाकी की साँसें दोस्तों की उधार हैं, और कुछ नहीं।।

बहुत ख़ूब ....
शैलेश जी

Gaurav Shukla ने कहा…

वाह
क्या खूब लिखा है शैलेश जी

"हमने अपनी जी ली, जितना खुद के हिस्से में था,
बाकी की साँसें दोस्तों की उधार हैं, और कुछ नहीं।।"

बहुत सुन्दर

राजीव रंजन प्रसाद ने कहा…

शैलेश जी..
इस स्तर की गजल पढने को मिले तो मन हर्षित हो उठता है। चुन चुन के शब्द और भाव भरे हैं आपने।

"तुमको सोचते-सोचते रात बूढ़ी हो गई,
आँखों को सुबह का इंतज़ार है, और कुछ नहीं"

साधारण सी लगने वाली बातों पर आपने सरल शब्दों में असाधारण लिखा है।

*** राजीव रंजन प्रसाद

सुनीता शानू ने कहा…

क्या बात है शैलेश जी बहुत सुन्दर मगर आपकी रचना भी ईद के चाँद सी है जो कभी-कभी नजर आती है,..मगर जब आती है तो पूरी चमक-दमक के साथ जैसे की चाँद आता है,..मजा़ आ गया,..कौनसी पंक्ति की बात करें,..सारी कि सारे कविता मुझे बेहद पसंद आई,...
सुनीता(शानू)

बेनामी ने कहा…

हमने अपनी जी ली, जितना खुद के हिस्से में था,
बाकी की साँसें दोस्तों की उधार हैं, और कुछ नहीं।।

देवेश वशिष्ठ ' खबरी ' ने कहा…

भाईसाहब
मैं आपकी कविता सदैव छंद के बंधन से मुख्त होकर पढता हूँ।
हिन्दी युग्म पर सादगी और सटीकता भरी रचनायें खूब मिल रही हैं

यह न सोचो, कहाँ से आती हैं दिल्ली में इतनी कारें,
जिनकी हैं, उनकी एक दिन की पगार है, और कुछ नहीं।।

जितनी साफ सी बात है, उतनी ही साफगोयी से लिखी भी है।
बधाई॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
आपका मासूम
देवेश वशिष्ठ'खबरी'

addictionofcinema ने कहा…

bahut achche shailesh. vyangya ke sthalon ko khoob pakda hai " aur kuch nahin" me

Medha P ने कहा…

Kahaneko to kavita hai,lekin aapke vichar bahot khub hain,"Aur kuch nahi".

विश्व दीपक ने कहा…

bahut hi achchhi rachna hai Shailesh ji. Dil baag-baag ho gaya.
Kya kahein iske alawa kahne ko aur kuchh nahi.

Yunus Khan ने कहा…

गजल ने छेड़ दिये दिल के तार और कुछ नहीं
अगली गजल का रहेगा इंतजार और कुछ नहीं
आपसे कभी कभी चैट हो जाये अच्‍छा लगता है
वरना दिल रहता है बेक़रार, और कुछ नहीं । थोड़े लिखे से मन की बात समझ लो ओ भारतवासी ये है हमारे दिल का गुबार और कुछ नहीं ।।

बेनामी ने कहा…

यह न सोचो, कहाँ से आती हैं दिल्ली में इतनी कारें,
जिनकी हैं, उनकी एक दिन की पगार है, और कुछ नहीं।।


:) यह खूब कही!

Unknown ने कहा…

aare wah really kya likhate ho aap sach me.....yeh char lines to hame bahut pasand aayi .....
ekdum sachai hai aapki kavita me aur utani bhi gahrai bhi ....

हमने अपनी जी ली, जितना खुद के हिस्से में था,
बाकी की साँसें दोस्तों की उधार हैं, और कुछ नहीं।।

तेरे न फ़ोन करने पर, जब भी हम शिकायत करें,
इसे गिला मत समझना, ये तो प्यार है, और कुछ नहीं।।

Admin ने कहा…

बहुत खूब..................शब्‍दों का चयन मनभावक है।

Reetesh Gupta ने कहा…

शैलेश जी,

ज़िंदगी बस मौत का इंतज़ार है, और कुछ नहीं।
हर शख़्स हुस्न का बीमार है, और कुछ नहीं।।

बहुत खूब ..सरल शब्दों में अपने विचारों को कविता में ह्रदय से पिरोया है आपने...बधाई

ऋषिकेश खोडके रुह ने कहा…

सुंदर रचना है और निम्न पंक्तियों के लिये तो आप बधाई के पात्र है

अब तो जंगलों में भी सुकूँ नहीं मिलता,
हर चीज़ पैसों में गिरफ़्तार है, और कुछ नहीं।।

यह न सोचो, कहाँ से आती हैं दिल्ली में इतनी कारें,
जिनकी हैं, उनकी एक दिन की पगार है, और कुछ नहीं।।

नेताओं की दुवा-सलामी से कभी खुश मत होना,
चुनाव-पूर्व के ये व्यवहार हैं, और कुछ नहीं।।

princcess ने कहा…

sidhi sadi bhasha aur hav prabhavit kar gaye,
lokbhogya kavita vahi jo sabko apni lage,

dhanyawaad shaileshjee

Priya Sudrania ने कहा…

kya baat hai shailesh ji...baut khub kaha apne....ab hamari deal ka adhiktam hissa aap hi ki shagirdi mein niklega...

divya ने कहा…

तुमको सोचते-सोचते रात बूढ़ी हो गई,
आँखों को सुबह का इंतज़ार है, और कुछ नहीं।।
ye pankhtiyan......wah wah.....
bahut khoob.....netaon pe aapke comments satik hai...
gazal lajawab hai.....