सोमवार, 26 मार्च 2007

दुनिया की चाल

ऐ दोस्त ! तुम्हें किस बात का मलाल है?
झूठी बातें, झूठे इरादे, ये तो दुनिया की चाल है।

आलोचनाओं की सूई किसे चुभोते हो?
ये तो नेता हैं, गधों सी इनकी खाल है।

माँगना ही है चंदा, तो लड़के के बाप से पूछो,
हमारी चार कन्या हैं, हम तो कंगाल हैं।

नौकरी पानी है, तो कम्प्यूटर सीखना,
उच्च-शिक्षा में रोज़गारों की हड़ताल है।

गोरा-काला ये तो नैनों का भ्रम है,
इस आवरण के नीचे तो हर कोई कंकाल है।

हर समस्या का समाधान बुजुर्गों के पास है
तुम्हें मालूम नहीं "शैलेश" के घने-काले बाल हैं।


लेखन-तिथि- ०६ अप्रैल २००६ तद्‌नुसार विक्रम संवत् २०६३ चैत शुक्ल पक्ष की अष्टमी।

9 टिप्‍पणियां:

राजीव रंजन प्रसाद ने कहा…

कमाल की भाषा, उच्च कोटि का व्यंग्य। बहुत सुन्दर रचना है शैलेष जी, पढ कर आनंद आ गया..

*** राजीव रंजन प्रसाद

बेनामी ने कहा…

बहुत ही खूबसूरती से आपने व्यंग्य रचा है.

बधाई स्वीकार करें।

बेनामी ने कहा…

बहुत ही खूबसूरती से आपने व्यंग्य रचा है.

बधाई स्वीकार करें।

बेनामी ने कहा…

"हर समस्या का समाधान बुजुर्गों के पास है
तुम्हें मालूम नहीं "शैलेश" के घने-काले बाल हैं।"
सच कहा है बिलकुल!
हमारे भी घने काले बाल है जो हमारी नासमझी की मिसाल है।
कैसी है तुकबन्दी!

SahityaShilpi ने कहा…

वाह शैलेश जी, आपके घने काले बाल तो सचमुच कमाल हैं। बहुत अच्छा व्यंग्य किया है।

princcess ने कहा…

satik vyangya

रंजू भाटिया ने कहा…

वाह !!शैलेश जी बहुत ख़ूब लिखा है ..

गोरा-काला ये तो नैनों का भ्रम है,
इस आवरण के नीचे तो हर कोई कंकाल है।

सुनीता शानू ने कहा…

क्या खूब आप तो छुपे रुस्तम है जनाब!वाकई बहुत सुन्दर रचना है...
सुनिता(शानू)

divya ने कहा…

माँगना ही है चंदा, तो लड़के के बाप से पूछो,
हमारी चार कन्या हैं, हम तो कंगाल हैं।
ye pankhtiyan kadvi sacchai bayan karti hai....azaadi ke 60 saal ke baad bhi ye sharmnaak pratha aaj bhi zida hai.....khubsurat vyang...