नर्क का सबूत
ढाई मीटर का था वो
कम से कम
जिंदा कहे जाने की हलचल
खो चुका था
घिरा था लाखों के बीच
अस्तित्व मिटा रहे थे
वे उसका
क्या दोष था उसका
यही कि?
चला जा रहा था चुपचाप!
पर जीने का यह कायदा नहीं है
आ गयें थे
भालें, बरछें, पत्थर और बन्दूक
लोगों की हाथों में
बरस पड़ा था उसपर
सबकुछ
उसके बाद कीड़ों का साम्राज्य
सेंध लगा गया था
कहते हैं कि
पाप की सज़ा
कीड़े पड़ना जैसा है
एक दिन और गुजरा
-कंकाल छोड़ गया था
नर्क का जीता-जागता सबूत!
(अपने गाँव में एक साँप की हत्या के उपरान्त)
लेखन-तिथिः दिनांक ३ अगस्त २००४ तद्नुसार विक्रम संवत् २०६१ श्रावण (द्वि॰) कृष्ण पक्ष की तृतीया
8 टिप्पणियां:
This one is really better than the last one. Go ahed and write somethin more beautyful.
Sarp jati mein utpanna hona is kaliyug ka sabse bada abhishaap hai. achchi rachna hai likhte rahein.
rachana to mast hai. lekin meri samajh mein ye nahi aata ki ise gadya kahoon ya padya. mera matlab yeh hai ki kavita mein tukbandi hona chahiye.
yar ye bas kavita likhne ke liye likhi gayi hai ..apne dekha aur paros diya ...lekin acchi bat hai ki apne likha varna bahut laogo per to aalaas ka sarp madrata hai ...
yar ye bas kavita likhne ke liye likhi gayi hai ..apne dekha aur paros diya ...lekin acchi bat hai ki apne likha varna bahut laogo per to aalaas ka sarp madrata hai ...
I read about you in the BBC article on banning blogging in India. I really liked your poem, even though my Hindi is not very good. Please keep up your poetry and the fight for freedom of expression in India.
हमसे अच्छा तो सांप है जब तक छेडो न तब तक कटता भी नही है। मनुष्य सबसे बुद्धिमान प्राणी हो कर ही सबसे भ्रष्ट है। जानवर तो भूख के लिये दूसरे को मारते है और हम ???
bahut badhiya likhte ho tum,shailesh.tumhari kavitayen padh k lagta hai ki kuchh achchha padha hai,aur kya kahu......great!
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